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स्वामी श्रद्धानन्द के प्रति / लाखन सिंह भदौरिया

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दयानन्द के दिव्य स्वप्न को, धरती पर उतारने वाले!
श्रद्धासिक्त हृदय से उन पर ओ सर्वस्व वारने वाले!
जो कल्याण मार्ग के पंथी, ओ कंटक बुहारने वाले!
प्रथम स्वयं का प्रक्षालन कर, पीछे जग सुधारने वाले!

श्रद्धा स्वयं सृजन की माता, नाम तुम्हारे ने बतलाया,
श्रद्धावान न क्या कर पाता, काम तुम्हारे ने बतलाया।
तुमने क्या-क्या कर दिखलाया, मैं कैसे गाकर बतलाउँ,
कर्म गिरा से अधिक मुखर है, रवि को क्या दीपक दिखलाऊँ।

ज्ञान दान की प्रबल पिपासा की, गुरुकुल दे रहा गवाही,
ओ ऋषि के उत्तराधिकारी! बलिदानी पथ के ओ राही!
कितना दर्द तुम्हारे दिल में, था इस दुखी देख के खातिर,
बता गये अपने जीवन से, तुम प्राणों की आहुति देकर।

आर्य जाति जागे, चेते, कुछ करे, स्वयं का आलम्बन ले,
रक्त-बीज बो गये, त्याग से, आर्य संस्कृति को जीवन दे।
गत जीवन का कल्मष धो-धो, आगत को दे गये उजाला,
स्वर्ण-धूल-सा बिखर गया है, अन्तस का आलोक निराला।

तप-तप कर तुमने जीवन भर, जप-जप शुद्धि मंत्र की माला,
सब को धोना ध्येय बनाया, इतना अपने को धो डाला।
तुम जाते जाते बोले थे-इस धरती पर फिर आऊँगा,
शुद्धि मंत्र की मन्दाकिन में, मनुज मात्र को नहलाऊँगा।

वचन तुम्हारे वे ही अब तक, अन्तरिक्ष में गूज रहे हैं,
कब आओगे, कब आओगे, ध्वनि-प्रतिध्वनि में पूछ रहे हैं।
देखें, इन प्रश्नों का उत्तर बनकर कौन आ रहा फिर से,
श्रद्धा-सुमन लिये जन जीवन, स्वागत-गान गा रहा फिर से।