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हज़ारों ख़्वाहिशें दिल में / मधुछन्दा चक्रवर्ती

Kavita Kosh से
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हज़ारों ख्वाहिशें दिल में उठा करती हैं।
पर किसी खास पे,
नज़रें जाकर रूकती हैं।
उस ख्वाहिश के साथ
हर लम्हा हम जीते हैं
हर पल उसे अपनी पलकों पर सँवारते हैं।
हजारों ख्वाहिशें जो दिल में उठा करती हैं।
पर किसी खास पर नज़रें जाकर रूकती हैं।

कोई कहता है ख्वाहिशें हैं बुलबुले पानी के,
बनती है एक पल में, पल में टूट जाती है।
तो क्या हुआ जो ये ख्वाहिशें हैं बुलबुले पानी के।
ज़िन्दगी भी तो ऐसी है कि आज आयी तो कल जानी है
फिर क्यों न ख्वाहिशें दिल में उठा करें।
और उन ख्वाहिशों में हम जिया करें।
उन ख्वाहिशों से किसी की ज़िन्दगी भी सँवार दिया करें।

हज़ारों ख्वाहिशे इसीलिए दिल में उठा करती हैं
और किसी खास पर इसीलिए ही नज़रें जाकर रूकती हैं।