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हज़ारो जुल्म हम सहते रहेंगे / 'महताब' हैदर नक़वी

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हज़ारो जुल्म हम सहते रहेंगे
तमन्ना-ए-दिली1 सहते रहेंगे

यूँ ही बाकी रहेगी खुश्क़साली2
ये दरिया भी यूँ ही बहते रहेंगे

मकान-ए-दिल कई खाली थे लेकिन
जहाँ रहते थे हम रहते रहेंगे

नयी तामीर होगी और पुराने
दर-ओ दीवार भी ढहते रहेंगे

कोई मौसम हो पर आँखों से आँसू
और सदा बहे हैं, बहते रहेंगे

रहें दाइम3 हमारे पढ़ने वाले
ग़जल के शेर हम कहते रहेंगे

1-दिल की चाहत 2-बारिश की कमी 3-हमेशा