भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हड्डियों में आग के / माधव कौशिक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हड्डियों में आग के चकमक नहीं।
अब किसी को चीखने का हक नहीं।

कौन रोकेगा सियासी बदचलन,
रास्ते में कोई अवरोधक नहीं।

जल रहा है शहर लेकिन ये कहो,
आजकल हालत विस्फोटक नहीं।

सारी दुनिया जानती है क्या हुआ,
आपको यह खबर अब तक नहीं।

राह थी तो राहबर कोई न था,
अब दिशा है पर दिशा सूचक नहीं।

भूख, बेकारी, जहालत इस कदर,
बालकों के पास भी गल्लक नहीं।

सच कहें सच के सिवा कुछ न कहें,
क्या शहर में एक भी अहमक नहीं।

इस व्यथा पर मैं कथा कैसे लिखूँ,
आपका बिखराव सम्मोहक नहीं।