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हमारे गाँव में भी अब सियासत आन पहुँची है / महेश कटारे सुगम

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हमारे गाँव में भी अब सियासत आन पहुँची है ।
दिलों को तोड़ने वाली अदावत आन पहुँची है ।

भले स्कूल ना हो पर शराबों की दुकानें हैं,
नशे में झोंकने वाली क़यामत आन पहुँची है ।

हर इक बेटी को सारा गाँव बेटी ही समझता था,
नज़र में अब वहाँ गन्दी शरारत आन पहुँची है ।

पुलिस थाने कचहरी को जहाँ असगुन समझते थे,
वहाँ चोरी डकैती डर ज़मानत आन पहुँची है ।

बड़े ही प्यार से हिलमिल सुगम सब लोग रहते थे,
वहाँ अब भाजपा इंका की फितरत आन पहुँची है ।