भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारे जिस्मों की छाप की तरह / येहूदा आमिखाई / उज्ज्वल भट्टाचार्य
Kavita Kosh से
हमारे जिस्मों की छाप की तरह
कोई निशान बचा नहीं रहेगा कि हम यहाँ थे
दुनिया हमारे बाद ख़त्म हो जाएगी,
बालू पर दाग मिट जाएँगे ।
तारीखें दिखाई देती हैं
जब तुम नहीं रह जाते,
हवा के थपेड़ों से बादल सरकते आ रहे हैं
जिन्हें हमारे ऊपर नहीं बरसना है ।
और तुम्हारा नाम उस जहाज़ के यात्रियों की सूची में है,
उन होटलों के रजिस्टरों में
जिनका नाम सुनते ही
दिल में ख़ौफ़ पैदा होता है ।
तीन भाषाएँ जो मैं जानता हूँ,
सारे रँग जिनमें मैं देखता हूँ और सपने देखता हूँ :
कोई मेरी मदद नहीं करेगा ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य