भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमें तो अब के भी आई ना रास तन्हाई / 'महताब' हैदर नक़वी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमें तो अब के भी आई ना रास तन्हाई
तुम्हीं बताओ के है किस के पास तन्हाई

उसे भी अब के बहुत रंज-ए-नारसाई है
खड़ी है शहर की सरहद के पास तन्हाई

इसीलिए तो न सहरा में है न बस्ती में
के हो न जाए कहीं बे-लिबास तन्हाई

तवील हिज्र ने दोनों को यूँ ख़राब किया
के उस के पास न अब मेरे पास तन्हाई

अँधेरी रात में आँखों में ख़्वाब की सूरत
कभी कभी नज़र आई उदास तन्हाई