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हम अंधेरों को दूर करते हैं / देवल आशीष

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हम अंधेरों को दूर करते हैं
अपनी ग़ज़लों से नूर करते हैं

हो गए आप कितना पत्थर-दिल
आईना चूर-चूर करते हैं

ग़ैर तो ग़ैर हैं, करें न करें
चोट अपने ज़रूर करते हैं

सब तो शामिल हैं उनकी महफ़िल में
हम भला क्या क़ुसूर करते हैं

आएगी कब यहाँ वो ख़ुशहाली
बात जिसकी हुज़ूर करते हैं