हम इक्कीस लोग / सुबोध सरकार / मुन्नी गुप्ता / अनिल पुष्कर
हम इक्कीस लोग निकल पड़े हैं
आर्यावर्त को
अभी बसन्त है
बसन्त मेरी पसन्दीदा ऋतु है
यदि हमारी पुकार सुनाई दे
चले आओ
हम बाईस लोग हो जाएँगे ।
बाईस लोगों की छोटी एक जनगोष्ठी आज से
आर्यावर्त भ्रमण करेगी
आर्यावर्त हम लोगों का,
यही रही शतद्रु
शतद्रु में यात्रियों भरी बस
क्यूँ उधर की तरफ देखा ?
आर्यावर्त में अभी बसन्त है ।
तुम, तुम जाओ जलरेखा पकड़कर
उत्तर भारत से वही जल कलिंग की ओर चला है –
तुम इस बन के भीतर से होकर जाओ
लेकिन अशोकवन में भूल से भी न घुसना
वहाँ अभी
त्रिपुरा की आदिवासी लड़कियों की क्रन्दन भरी रात।
वन के भीतर
हर एक को,
हर एक के कुटीर में घुसकर अरण्यवासी को
हर एक छाया को
पूछना तुम किधर जाओगे
आर्यावर्त में किस तरफ है अभी बसन्त ।
जनपद में सबसे अधिक भय है
भेड़ के बच्चों का जनपद लुप्त हो गया है,
डॉ. लाहिड़ी तुम तो मनोरोग विशेषज्ञ हो
तब वैशाली पार कर पूर्णमित्र की जगह तुम पहले घुसना
हर एक घर में
हर एक दरवाज़े को तुम खटखटाना
किसे चाहिए ? किसे चाहिए ? किसको ?
बासवदत्ता को
आम्रपाली को
शकुन्तला को
सूर्यास्त के ठीक पहले हर एक नौका के पास
हम बाईस लोग
शराब और लवण मिला, नाम लिख, निकल पड़े हैं ।
बासवदत्ता तुम कुएँ से जल निकाल देना
हम लोग प्यासे हैं
अभी बसन्त है
हम बाईस जन हैं
छोटी एक जन गोष्ठी
इसी शर्त पर आर्यावर्त के लिए निकल पड़ी है ।
मूल बाँग्ला से अनुवाद : मुन्नी गुप्ता और अनिल पुष्कर