भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम किस खबर की प्रतीक्षा में हैं...? / अखिलेश्वर पांडेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब कोई भी खबर
रोमाँचित नहीं करती
बड़ी नहीं लगती
उत्तेजना से परे
बर्फ की तरह
ठंडी लगती है
टीवी की स्क्रीन पर अंधेरा है
नेताओं की ग्लैमर की तरह ही
विकास का मुद्दा अब बासी हो चला है
किसानों-मजदूरों का जहर खा लेना
या लगा लेना फांसी भी
विज्ञापन से भरे पेज पर छिप जाता है
चारों तरफ सन्नाटा है
शोर सुनायी नहीं पड़ता
देशभक्ति, राष्ट्रवाद चरम पर है
इंसानियत खामोश है
एकदम तमाशबीन बनकर
कानून के नुमाइंदे ही
कानून तोड़ रहे
सब चुप हैं
राष्ट्रद्रोही कौन कहलाना चाहेगा भला?
किसी से सहमत होना
गिरोहबंदी है
साथ होना लामबंदी
नपूंसकता की परिभाषा
हिजड़े तय कर रहे हैं
सीना का पैमाना 56 इंच हो गया है!
गुंगे फुसफुसा रहे हैं
बहरे सुनने लगे हैं
लंगड़ों की फर्राटा दौड़ हो रही है
हम किस खबर की प्रतीक्षा में हैं...?