भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम लिए बैठे हैं गुज़रे हुए दिन की पहचान / निश्तर ख़ानक़ाही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इश्क़ क्या शय हो? जमाने की हवा कैसी हो
किसको मालूम है, कल बज़ए-वफ़ा* कैसी हो

हम लिए बैठे हैं गुज़रे हुए दिन की पहचान
जाने कल भीड़ में उस बुत की क़बा* कैसी हो

लफ़्ज़ का किसको भरोसा कि ख़बर ये भी नहीं
कल मेरे लब से जो निकले वो नवा* कैसी हो

उम्र जब दे चुके गुज़रे हुए लम्हों को तलाक़
जाने उस वक़्त मेरे घर की फ़िजा कैसी हो

आज की शब के तअल्लुक से कर कल का क़यास*
सुबह तक उसकी रविश किसको पता कैसी हो

1- बज़ए-वफ़ा--वफ़ा का ढ़ग

2- क़बा---वस्त्र

3- नवा--आवाज़

4- क़यास--अनुमान