भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम सुनायें तो कहानी और है / फ़राज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम सुनायें तो कहानी और है
यार लोगों की जुबानी और है

चारागर रोते हैं ताज़ा ज़ख्म को
दिल की बीमारी पुरानी और है

जो कहा हमने वो मजमूँ और था
तर्जुमाँ की तर्जुमानी और है

है बिसाते-दिल लहू की एक बूंद
चश्मे-पुर-खूं की रवानी और है

नामाबर को कुछ भी हम पैगाम दें
दास्ताँ उसने सुनानी और है

आबे-जमजम दोस्त लायें हैं अबस
हम जो पीते हैं वो पानी और है

सब कयामत कामतों को देख लो
क्या मेरे जानाँ का सानी और है

अहले-दिल के अन्जुमन में आ कभी
उसकी दुनिया यार जानी और है

शाइरी करती है इक दुनिया फ़राज़
पर तेरी सादा बयानी और है

चश्मे-पुर-खूं - खून से भरी हुई आँख
आबे-जमजम - मक्के का पवित्र पानी
अबस - बेकार, सानी - बराबर, दूसरा
कामत - लम्बे शरीर वाला (यहाँ कयामत/ज़ुल्म ढाने वाले से मतलब है)