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हम हैं किस हाल में, तुम हमसे ये पूछा न करो / दरवेश भारती
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हम हैं किस हाल में, तुम हमसे ये पूछा न करो
भर चुके ज़ख़्मों को इस तरह तो ताज़ा न करो
ये बना देंगे तुम्हें रंक कभी, राजा कभी
ख़्वाब तो ख़्वाब हैं, ख़्वाबों पर भरोसा न करो
उलझनें घर की हों जो घर ही में सुलझाओ उन्हें
यूँ सरे-आम कभी खुद का तमाशा न करो
प्यार कर लो किसी लाचार से, बेकस से फ़क़त
फिर परस्तिश किसी पत्थर की करो या न करो
राम और कृष्ण सरीखों से भी होनी न टली
कभी बेमा' नी ख़यालात में उलझा न करो
मस्ती हर शय की तो बोलेगी सदा सर चढ़कर
ज़ब्त है तुममें ज़रा भी तो यूँ बहका न करो
अक़्लमंद आज हैं दुनिया में वही तो 'दरवेश'
काम जो खुद तो करें और कहें ऐसा न करो