हर आदमी चल रहा है अपनी कूवत भर / रोवेर्तो ख्वार्रोस / प्रेमलता वर्मा
हर आदमी चल रहा है अपनी कूवत भर
कुछ अधखुली छाती लिए
कुछ महज एक ही हाथ के साथ
कुछ आइडेण्टिटी कार्ड जेब में
और कुछ लोग आत्मा में रखे
कुछ और भी लोग हैं जो लहू में ही
चान्द का पेंचकस लिए चल रहे हैं
और दूसरे हैं — बग़ैर लहू, बग़ैर चान्द, बग़ैर याद के।
हर एक चल रहा है रुके या न रुके
कुछ दाँतों बीच प्यार भींचे
कुछ अन्य, केंचुल बदलते
कुछ जीवन-मौत को हथेली में लिए
कुछ हैं अपना हाथ कन्धे पे रखे ।
और कुछ दूसरे हैं अपना हाथ दूसरों के कन्धों पर धरे।
हर एक चल रहा है क्योंकि चलना ही है
कुछ लोग किसी के संग बिताई रात भौहों के बीच दबाए
और दूसरे बिना किसी के झमेले में पड़े,
एक आदमी रास्ते की ओर खुलते प्रतीत होते दरवाज़े की
ओर मुड़ता है तो दूसरा दीवाल में खुदे
या हवा में चित्रित दरवाज़े से गुज़र जाता है
एक है कि चल रहा है बिना जीने की शुरुआत किए
और न दूसरे ने ही शुरुआत की जाने की
मगर सभी चल रहे हैं बन्धे पाँव
कुछ अपने बनाए रास्ते से
कुछ, उस रास्ते से जिसे उन्होंने कभी बनाया ही नहीं
सभी उस रास्ते से जिसे वे कभी नहीं गढ़ेंगे
चल रहे हैं ।
मूल स्पानी से अनुवाद : प्रेमलता वर्मा’