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हर तरफ से जमा रहा है वह / श्याम कश्यप बेचैन

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हर तरफ से जमा रहा है वह
लहरें गिन कर कमा रहा है वह

धुन में पाने के, उसको क्या मालूम
अपना क्या-क्या गुमा रहा है वह

चलती फिरती मशीन है अब तो
हाँ, कभी आत्मा रहा है वह

ऊब जाता है क्यों घड़ी भर में
मन जहाँ भी रमा रहा है वह

दोस्ती अब नहीं रही शायद
दोस्त को आज़मा रहा है वह