भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हादसों का शहर है सम्भल जाइए / मृदुला झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कौन कब किस डगर है सम्भल जाइए।

नेक रस्ते पे चलते हुए आजकल,
आदमी दर-ब-दर है सम्भल जाइये।

चाहे कहिये सड़क इसको या इक नदी,
इस कदर रह गुजर है सम्भल जाइये।

दर्द कितने दिये हैं उसे आपने,
यह शराफत नहीं है सम्भल जाइये।

जान सस्ती मगर चीज महंगी यहाँ,
बाकी सब बेअसर है सम्भल जाइए।