भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाले दिल सुना नहीं सकता / अकबर इलाहाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाले दिल सुना नहीं सकता
लफ़्ज़ मानी को पा नहीं सकता

इश्क़ नाज़ुक मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता

होशे-आरिफ़ की है यही पहचान
कि ख़ुदी में समा नहीं सकता

पोंछ सकता है हमनशीं आँसू
दाग़े-दिल को मिटा नहीं सकता

मुझको हैरत है इस कदर उस पर
इल्म उसका घटा नहीं सकता