भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हिन्दी का नमक / कमल जीत चौधरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खेत - खेत
शहर - शहर
तुम्हारे बेआवाज़ जहाज़
आसमान से फेंक रहे हैं
शक्कर की बोरियाँ

इस देश के जिस्म पर
फैल रही हैं चींटियाँ
छलाँग लगाने के लिए नदी भी नहीं बची —

मिठास के व्यापारी
यह दुनिया मीठी हो सकती है
पर मेरी जीभ तुम्हारा उपनिवेश नहीं हो सकती

यह हिन्दी का नमक चाटती है ।