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हे मेरी प्रिये, कहाँ भटक रही हो इधर उधर? / विलियम शेक्सपियर / सोनाली मिश्र

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हे मेरी प्रिये ! कहाँ भटक रही हो इधर उधर ?
रुको और सुनो तो ! अपने सच्चे प्रेम का स्वर ।
धुन उसकी साथ रहेगी हर उतार चढ़ाव में,
हे प्रिये ठहरो यहीं, क्षण हैं अब विश्राम के ।
प्रेमियों का मिलन ही धरता है यात्रा पर विराम,
कोई भी ज्ञानी पुरुष इस तथ्य से नहीं अनजान !

प्रेम क्या है ? किसे तनिक भी आभास है,
आज की मृगतृष्णा में छिपा आज का उल्लास है,
भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, पता नहीं,
पर, मिलन की देरी में सुनो कुछ लाभ नहीं ।
हे प्रिय ! चुम्बनों की वर्षा से अब न तुम भयभीत हो,
यौवन ही है जिसके हर क्षण में प्रेम की ही जीत हो !

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोनाली मिश्र

लीजिए, अब यही रचना मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
              William Shakespeare
                 O Mistress Mine

O mistress mine, where are you roaming?
O stay and hear! your true-love's coming
That can sing both high and low;
Trip no further, pretty sweeting,
Journey's end in lovers' meeting-
Every wise man's son doth know.

What is love? 'tis not hereafter;
Present mirth hath present laughter;
What's to come is still unsure:
In delay there lies no plenty,-
Then come kiss me, Sweet and twenty,
Youth's a stuff will not endure.