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हे राधा-माधव! तुम दोनों दो मुझको चरणोंमें स्थान / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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हे राधा-माधव! तुम दोनों दो मुझको चरणोंमें स्थान।
दासी मुझे बनाकर रखो, सेवाका अवसर दो दान॥
मैं अति मूढ़, चाकरीकी चतुरा‌ईका न तनिक-सा जान।
दीन नवीन सेविकापर दो समुद उँडेल सनेह अमान॥
रजकण सरस चरण-कमलोंका खो देगा सारा अजान।
ज्योतिमयी रसमयी सेविका मैं बन जाऊँगी सजान॥
राधा-सखी-मजरीको रख समुख मैं आदर्श महान।
हो पदानुगत उसके, नित्य करूँगी मैं सेवा सविधान॥
झाड्‌ू दूँगी मैं निकुजमें, साफ करूँगी पादत्रान।
हौले-हौले हवा करूँगी सुखद व्यजन ले सुरभित आन॥
देखा नित्य करूँगी मैं तुम दोनोंकी मोहनि मुसकान।
वेतन यही, यही होगा बस, मेरा पुरस्कार निर्मान॥