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है उपहार बसंत का होली / हरिवंश प्रभात

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है उपहार बसंत का होली, हम त्योहार मनाते हैं,
खुशी-खुशी से प्रेम से सबको रंग-अबीर लगाते हैं।

आपस का जो बैर-भाव की होलिका आज जला देते,
जो भी रहे पराया उसको हँसकर गले लगा लेते,
जो हैं बिछड़े आज मिलन के गीत पपीहा गाते हैं।

रंग, अबीर, गुलाल को लेकर मस्तों की टोली आई,
गूँज रही हर दिशा-दिशा, होली आई, होली आई,
घर-घर में पकवान बने हैं, खाते और खिलाते हैं।

कितना मदिर, मिठास भरा है, चारों ओर जवानी है,
पिचकारी के रंग में भीगे, बनकर राजा रानी है,
सबका चेहरा एक समान है, फर्क कहाँ कर पाते हैं।

रंगों की भांति मिल जाओ, यही संदेशा है होली
जात-पांत और सम्प्रदाय का भेद मिटाती है होली
हम सब मिलकर एक रहेंगे, एकता का भाव जगाते हैं।

इस महंगाई के युग में, होली का रंग बदरंग हुआ,
उग्रवाद के साये में सुख से जीना एक जंग हुआ,
अमन पसंद हैं भारतवासी, प्रेम सुधा बरसाते हैं।