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है वही दुनिया नये अंदाज़ में दिखने लगी / डी. एम. मिश्र

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है वही दुनिया नये अंदाज़ में दिखने लगी
एक दूरी रख के अब औलाद भी मिलने लगी।

जानते हैं सब ज़हर है खा रहे हैं शौक़ से
साल भर लौकी बिना मौसम के अब मिलने लगी।

तब कहीं मुश्किल से मिलती थीं नशे की गोलियाँ
पान की दूकान पर ड्रग अब खुले बिकने लगीं।

बढ़ गये कितने मुक़दमे आपको मालूम है
जब से मेरे गाँव से भी टैक्सी चलने लगी।

मशवरा बेटों को दे देते हैं हम डरते हुए
किन्तु, उनकी माँ तो अब ख़ामोश ही रहने लगी।