भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हो न रंगीन तबीयत / अकबर इलाहाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हो न रंगीन तबीयत भी किसी की या रब
आदमी को यह मुसीबत में फँसा देती है

निगहे-लुत्फ़ तेरी बादे-बहारी है मगर
गुंचए-ख़ातिरे-आशिक़ को खिला देती है