भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हौं कुरबाने जाउँ पियारे / नानकदेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हौं कुरबाने जाउँ पियारे, हौं कुरबाने जाउँ॥

हौं कुरबाने जाउँ तिन्हाँ दे, लैन जो तेरा नाउँ।
लैन जो तेरा नाउँ तिन्हाँ दे, हौं सद कुरबाने जाउँ॥१॥

काया रँगन जे थिये प्यारे, पाइये नाउँ मजीठ।
रंगनवाला जे रँगे साहिब, ऐसा रंग न डीठ॥२॥

जिनके चोलड़े रत्तड़े प्यारे कंत तिन्हाँ दे पास।
धूड़ तिन्हाँ कोजे मिले जीको, नानकदी अरदास॥३॥