भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हौसला नदी का / भावना सक्सैना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पार साल से नदी
कुछ खारी हो गयी है
थकने लगी थी बीहड़ में
पत्थरों से उलझते
सिंधु से लेकर अपना जल
अब उलटी बह रही है,
जब तक मीठी थी
हर मोड़ पर कटती रही
अब खारी हुई तो
लबालब शांत बह रही है,
हौसला चाहिए
मिठास खोने को भी
ज़रा टेढ़ा-सा मुस्कुरा
घाटियों से कह रही है...