भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर तरफ से जमा रहा है वह / श्याम कश्यप बेचैन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:04, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम कश्यप बेचैन }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> हर तरफ से जमा रहा …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर तरफ से जमा रहा है वह
लहरें गिन कर कमा रहा है वह

धुन में पाने के, उसको क्या मालूम
अपना क्या-क्या गुमा रहा है वह

चलती फिरती मशीन है अब तो
हाँ, कभी आत्मा रहा है वह

ऊब जाता है क्यों घड़ी भर में
मन जहाँ भी रमा रहा है वह

दोस्ती अब नहीं रही शायद
दोस्त को आज़मा रहा है वह