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उमस है, प्यास है, गहरी घुटन है / श्याम कश्यप बेचैन

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उमस है प्यास है गहरी घुटन है
शहर है या कोई सँकरा सहन है

बिजूखे की तरह जो दिख रहा है
किसी मग़रूर का शायद जे़हन है

जे़हन पे हम बहुत इतरा रहे थे
चलो अच्छा हुआ वह भी रेहन है

नीयत सबकी डुला देती है काफ़िर
हवा उसकी गली की बदचलन है

वो मेरी रूह तो शायद नहीं है
ये देखो लाश किसकी बेकफ़न है

सिखा चालाकियाँ, इसको ना छीनो
मेरा सब कुछ मेरा दीवानापन है

मुझे बाहर ही बाहर ढूँढता है
मेरा एहसास कस्तूरी हिरन है