भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न कोई साया, न सूरत उदास रहता हूँ / 'महताब' हैदर नक़वी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:02, 23 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='महताब' हैदर नक़वी }} {{KKCatGhazal}} <poem> न कोई ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न कोई साया, न सूरत उदास रहता हूँ
तेरे ख़याल के मंज़र में भी अकेला हूँ
 
मसर्रतों के दरख़्तों पे फूल आते थे
मता-ए-दर्द नहीं थी ख़रीद लाया हूँ
 
ग़रीब-ए-शहर को देखूँ तो घर न याद आये
वतन से दूर हूँ अब के बहुत अकेला हूँ
 
मेरे ख़ुदा मेरी वहशत में कुछ कमी कर दे
रग-ए-गुलाब से संग-ए-गिराँ उठाता हूँ
 
मैं तेरे नाम से रोशन करूँगा शहर तमाम
तेरे लिये मैं हँसी माहताब लाया हूँ