भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वफ़ा अंजाम होती जा रही है / सैफ़ुद्दीन सैफ़

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:55, 8 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सैफ़ुद्दीन सैफ़ }} {{KKCatGhazal}} <poem> वफ़ा अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वफ़ा अंजाम होती जा रही है
मोहब्बत ख़ाम होती जा रही है

ज़रा चेहरे से ज़ुल्फ़ों का हटा लो
ये केसी शाम होती जा रही है

क़यामत है मोहब्बत रफ़्ता-रफ़्ता
ग़म-ए-अय्याम होती जा रही है

सुना है अब तिरे लुत्फ़ ओ करम की
हिकायत आम होती जा रही है

दिखाने का ज़रा आँखें बदल लो
वफ़ा इल्ज़ाम होती जा रही है

मिरे जज़्ब-ए-वफ़ा से ख़ामुशी भी
तिरा पैग़ाम होती जा रही है

कोई करवट बदल ऐ दर्द-ए-हस्ती
तमन्ना दाम होती जा रही है

मोहब्बत ‘सैफ़’ एक लुत्फ़-ए-निहाँ थी
मगर बदनाम होती जा रही है