भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज सखी म्हारे बाग मैं हे किसी छाई अजब बहार / कृष्ण चन्द

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:27, 6 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्ण चन्द |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatHar...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज सखी म्हारे बाग मैं हे किसी छाई अजब बहार
हे ये हंस पखेरु आ रहे

जैसे अंबर मैं तारे खिलैं, ये पंख फैलाए ऐसे चलैं
जैसे नीचे को पानी ढलै हे मिलैं कर आपस मैं प्यार
हे मेरे बहुत घणे मन भा रहे

बड़ी प्यारी सुरत हे इसी, जैसे अंबर लगते किसी
मेरै मोहनी मूरत मन बसी, किसी शोभा हुई गुलजार
हे दिल आपस मैं बहला रहे

कदे बैठैं हरियल डाल पै, मैं व्याकुल इनके हाल पै
ये मायल जल की झाल पै गई बैठ ताल पै डार
हे कुछ आवैं कुछ जा रहे

सब मन की चिंता त्याग कै, फेर सब सखियां नै लाग कै
वही हंस पकड़ लिया भाग कै, इस राग कै बस संसार
हे कथा कृष्ण चन्द भी गा रहे