भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मर मर कर जीना छोड़ दिया / फ़रहत शहज़ाद

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:35, 19 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़रहत शहज़ाद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मर मर कर जीना छोड़ दिया
लो हमने पिना छोड़ दिया

खाबों के खयाली धागों से
ज़ख्मों को सीना छोड़ दिया

ढलते ही शाम सुलू होना
हमने वो करीना छोड़ दिया

तूफ़ान हमे वो रास आया
के हमने सफीना छोड़ दिया

मय क्या छोड़ी के लगता है
 जीते जी जीना छोड़ दिया

'शहज़ाद' ने ख़्वाबों में जीना
ऐ शोख़ हसीना छोड़ दिया