भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसे तो हादिसा कहिए अगर नहीं आता / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर

Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:54, 15 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र सिंह काफ़िर |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसे तो हादिसा कहिए अगर नहीं आता
जो शख़्स ख़्वाब में भी आँख भर नहीं आता

तुम एक साथ न सारे ही रास्ते रख दो
हमारे पैरों में इतना सफ़र नहीं आता

सो मेरे दिल को बियाबाँ भी लोग कहते हैं
ये वो जगह है कि कोई जिधर नहीं आता

सियाह रात की ऊँगली पकड़ के चलते हुए
कोई भी चाँद कहीं भी नज़र नहीं आता

तेरा नसीब अगर मुझको रोक ले वर्ना
मैं वक़्त जैसा हूँ जो लौटकर नहीं आता

मिज़ाज- ए- दुनिया से दरअस्ल मैं न था वाक़िफ़
ज़रा भी होती भनक तो इधर नहीं आता