भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वे ही तय करते हैं / श्रीधर करुणानिधि

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:16, 17 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीधर करुणानिधि |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब वे ही तय करते हैं हमारी खातिर
हमारे न चाहते हुए भी
तय करते हैं कि
कितनी हो हमारी टाँगों के हिस्से धरती
बाहों को आकाश
और आँखों को बादल

तय करते हैं वे कि
हमारी फ़सलों को कितनी चाहिए नमी
बीज, खाद
और सूरज

वे ही तो तय करते हैं
हवाओं का रुख़

अब तो फलों के पकने का
मौसम भी तय करते हैं वे
तय करते हैं कि
कितना खिलना है फूलों को
मासूम दिखने की खातिर