भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दिन ब्रह्मा मिल जाते... / हिमांशु पाण्डेय

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:09, 9 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय }} <poem> एक दिन ब्रह्मा मिल जाते त...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
 
एक दिन ब्रह्मा मिल जाते
तो उनसे पूछता कुछ प्रश्न
और अपनी जिज्ञासा शांत करता
कि क्यों नहीं पहुंचती
उन तक किसी की चीख ?

उनसे पूछता कि
जिसका ताना मजेदार, खूब रसभरा है
फलदार क्यों नहीं हो गयी वह ईख ?
और जानता कि
जिसकी लकडियाँ बांटती हैं सुगंध चहुँओर
उस चंदन के वृक्ष में
क्यों नहीं दीखता कोई फूल ?
और समझता कि
जिसे चमकते देख
मुग्ध हो जाता है मन
उस स्वर्ण ने गमकना क्यों नहीं सीखा?
और जवाब मांगता उनसे कि
क्यों अल्पायु होते है सुधि-क्षण
और विद्वान को
क्यों नहीं मिलती भली-भीख ?

एक दिन ब्रह्मा मिल जाते
तो उनसे पूछता यही कुछ प्रश्न ।