भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ढिठाई / लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:32, 1 अक्टूबर 2016 का अवतरण (लक्ष्मीशंकर जी की अतुकांत कविता)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो एक मरियल-सा चींटा था
बल्कि चींटे का बच्चा था
तीन बार फेंका मैंने उसे दूर
उँगली से छिटककर
पर वह ढीठ चौथी बार भी
उसी रास्ते लौटकर बढ़ा मेरी ओर
और तब अचानक आया मुझे खयाल
हो सकता है, इसे पता हो
यही एकमात्र रास्ता अपने घर लौटने का
जहाँ प्रतीक्षा में बैठी हो उसकी
माँ!
और मैंने जाने दिया उसे बेरोक-टोक।