भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम ना आए / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:17, 5 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदेव शर्मा 'पथिक' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आस जीवन भर
बिलखते रह गए,
पर तुम ना आए!
प्यार के मधुमय डगर पर
तुम न आए!

जा चुकी जाने न कितनी
साँझ आकर
याद में तेरी युगों से
है दृगों में मेघ छाए
किंतु निर्मम!
तुम न आए!

एक निर्मम के लिए ही,
सेज पलकों की बिछाकर,
प्यास युग- युग की जगाए,
जोहने को बाट केवल,
दीप भी कितने जलाए!
तुम न आए!

क्या कभी तुम आ सकोगे!
प्यार की पंकिल डगर पर?
झाँक लोगे इंदू बनकर,
कब सलोना गात अपना,
नयन-गंगा की लहर पर
रूप की मस्ती दबाए!
तुम न आए!

प्यास मिलने की जगी है,
मौन मेरी ही व्यथा से,
या तुम्हारी हीं प्रतीक्षा,
से विकल क्या रात रोई?
स्वर मिलाने को तुम्हीं से,
गीत भी कितने न गाए!
तुम न आए!
 
मैं कहूँँगा जिंदगी भर,
याद लेकर, आह लेकर
विश्व के भी रोकने पर,
जिंदगी में भूलकर भी,
हाय! निष्ठुर,
प्यार की संध्या न आए,
प्यास नैनों में जगाए,
क्योंकि सुन लो
प्यार मेरे!
तुम न आए!