भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देह भाषा / दिलीप शाक्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:13, 9 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिलीप शाक्य |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> उसकी देह उसकी भा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसकी देह
उसकी भाषा को रौंद कर आगे निकल आई

टूटकर बिखर गया
उसके लिबास का कसा हुआ वाक्य
छिटक कर दूर जा गिरे नींद में हँसते हुए शब्द

इससे पहले कि संभलता मेरी लिपि का व्याकरण
तालू से चिपकते गए वर्ण
गले में रुँधती गईं ध्वनियाँ
होश की तरह छूट गई साँसों से वर्तनी

आँखों में पिघलता रहा कोई मधुवन
रोम-रोम में समा गई गंध