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प्रेम-कविता / शलभ श्रीराम सिंह

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जिसने दिया
लिया भी उसी ने ।

काहे का दु:ख
अगर ले-ले कोई
अपनी दी हुई चीज़ ।

कहाँ थी उम्र अपनी ?
कहाँ था सुख ?
दु:ख तक अपना कहाँ था भला ?
ज्ञान कहाँ था अपना?
कहाँ था अज्ञान ?

कहाँ थी हँसी ?
रुदन कहाँ था अपना ?
जिसका था ले गया वही ।