भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम प्रकाश फैलायें / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:18, 25 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़ा काम हम नन्हें-मुन्ने करके आज दिखायें।
राष्ट्र-प्रेम का दीप जलाकर हम प्रकाश फैलायें।

चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम,
चाहे सिख-ईसाई.
सभी नागरिक हैं भारत के,
सब हैं भाई-भाई.
कोई अगर समस्या आये मिल-जुल कर सुलझायें।
राष्ट्र-प्रेम का दीप जलाकर हम प्रकाश फैलायें।

मस्जिद भी प्यारी है हमको,
मंदिर भी है प्यारा।
प्यारा है गिरजाघर हमको,
प्यारा है गुरुद्वारा।
सबका आदर करें हम सभी सबको शीश नवायें।
राष्ट्र-प्रेम का दीप जलाकर हम प्रकाश फैलायें।

सुजला-सुफला-शस्य-श्यामला,
धरती अपनी माता।
इसकी माटी के कण-कण से,
अपना गहरा नाता।
इसकी खातिर जियें इसी की खातिर प्राण गवाँयें।
राष्ट्र-प्रेम का दीप जलाकर हम प्रकाश फैलायें।