पद 61 से 70 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 4
पद संख्या 67 तथा 68
(67),
राम राम जपु जिय सदा सानुराग रे।
कलि न बिराग, जोग, जाग, तप, त्याग रे।1।
राम सुमिरत सब बिधि ही को राज रे।
रामको बिसारिबो निषेध-सिरताज रे।2।
राम-नाम महामनि, फनि जगजाल रे।
मनि लिये फनि जियै, ब्याकुल बिहाल रे।3।
राम-नाम कामतरू देत फल चारि रे।
कहत पुरान, बेद, पंडित, पुरारि रे।4।
राम-नाम प्रेम-परमारथको सार रे।
राम-नाम तुलसीको जीवन-अधार रे।5।
(68),
राम राम राम जीह जौलौं तू न जपिहै।
तौलौं , तू कहूँ जाय, तिहूँ ताप तपिहै।1।
सरसरि-तीर बिनु नीर दुख पाइहै।
सुरतरू तरे तोहि दारिद सताइहै।2।
जागत ,बागत, सपने न सुख सोइहै।
जनम जनम, जुग जुग जग रोइहै।3।
छूटिबेके जतन बिसेन बाँधो जायगो।
ह्वैहै बिष भोजन जो सुधा -सानि खाइगो।4।
तुलसी तिलोक , तिहूँ काल तोसे दीनको।
रामनाम ही की गति जैसे जल मीनको।5।