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विनयावली / तुलसीदास / पद 61 से 70 तक / पृष्ठ 5

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पद संख्या 69 तथा 70

(69),

सुमिरू सनेहसों तू नाम रामरायको।
संबल निसंबलको, सखा असहायको।1।

भाग है अभागेहूको, गुन गुनहीनको।
 गाहक गरीब को, दयालु दानि दीनको।2।

कुल अकुलीनको, सुन्यो है बेद साखि है।
पाँखुरेको हाथ-पाँय, आँधरेको आँखि है।3।

माय-बाप भूखेको, अधार निराधारको।
 सेतु भव-सागरको, हेतु सुखसारको।4।

पतितपावन राम-नाम सो न दूसरेा।
सुमिरि सुभूमि भयो तुलसी सो ऊसरा।5।

(70),
भलो भलो भाँति है जो मेरे कहे लागिहै।
मन राम-नामसों सुभाय अनुरागिहै।1।

राम-नामको प्रभाउ जानि जूड़ी आगिहै।
सहित सहाय कलिकाल भीरू भागिहै।2।

राम-नामसों बिराग, जोग, जम जागिहै।
बाम बिधि भाल हू न करम दाग दागिहै।3।

 राम-नाम मोदक सनेह सुधा पागिहै।
पाइ परितोष तू न द्वार द्वार बागिहै।4।

राम-नाम काम-तरू जोइ जोइ माँगिहै।
तुलसिदास स्वारथ परमारथ न खाँगिहै।5।