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रामाज्ञा प्रश्न / चतुर्थ सर्ग / सप्तक ७ / तुलसीदास

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कौसिक देखन धनुष मख चले संग दो‍उ भाइ।
कुँअर निरखि पुर नारि नर मुदित नयन फल पाइ॥१॥
विश्र्वामित्रजी दोनों भाइयोंके साथ धनुषयज्ञ देखने चले। दोनों कुमारोंको देखकर नगरके स्त्री-पुरुष नेत्रोंका फल पाकर प्रसन्न हो रहे हैं ॥१॥
(प्रश्‍न-फल श्रेष्ठ है।)

भूप सभाँ भव चाप दलि राजत राजकिसोर।
सिद्धि सुमंगल सगुन सुभ जय जय जय सब ओर॥२॥
राजाओंकी सभामें शंकरजीके धनुषको तोड़कर (अयोध्याके) राजकुमार (श्रीराम) शोभित हो रहे हैं। सब ओर उनकी जय-जयकार हो रही है। यह शुभ शकुन सफलतादायक एवं परम कल्याणकारी है॥२॥

जयमय मंजुल माल उर मंगल मुरति देखि।
गान निसान प्रसुन झरि मंगल मोद बिसोषि॥३॥
विजयसूचक मनोहर जयमाला वक्षःस्थलपर धारण किये (श्रीरामकी) मंगलमयी मूर्ति देखकर मंगलगान तथा पुष्पवर्षा हो रही है और नगारे बज रहे हैं, अत्यन्त आनन्द मड्गल हो रहा है ॥३॥
(प्रश्‍न फल शुभ है।)

समाचार सुनि अवधपति आए सहित समाज।
प्रीति परस्पर मिलत मुद, सगुन सुमंगल साज॥४॥
समाचार सुनकर अयोध्यानाथ ( महाराज दशरथ ) बरातके साथ आये । दोनों नरेश प्रेमपूर्वक एक-दुसरेसे मिलते हुए बडे़ ही आनन्दका अनुभव कर रहे हैं। यह शकुन परम मंगलकारी है॥४॥

गान निसान बितान बर बिरचे बिबिध बिधान।
चारि बिबाह उछाह बड़, कुसल काज कल्यान॥५॥
मंगलगान हो रहा है, नगारे बज रहे हैं, अनेक प्रकारकी करीगरीसे युक्त श्रेष्ठ मण्डप बनाये गये हैं, (एक साथ) चार विवाह होनेसे बडा़ उत्सव हो रहा है। (यह शकुन) कुशलपूर्वक विवाह-कार्यको पूर्ण करनेवाला है॥५॥

दाइज पाइ अनेक बिधि सुत सुतबधुन समेत।
अवधनाथु आए अवध सकल सुमंगल लेत॥६॥
अनेक प्रकारका दहेज पाकर पुत्र और पुत्रवधुओंके साथ अयोध्यानाथ (महाराज दशरथ) समस्त सुमंगल प्राप्त करके अयोध्या लौटे॥६॥
(प्रश्‍न फल उत्तम है।)

चौथ चारु उनचास पुर घर घर मंगलचार।
तुलसिहि सब दिन दाहिने द्सरथ राजकुमार॥७॥
(अयोध्यामें) घर-घर मंगलाचार हो रहा है। तुलसीदासजी कहते हैं कि चौथें सर्गका उनचासवाँ दोहा शुभ है, दशरथकुमार (श्रीराम) सब समय अनुकूल हैं॥७॥