रामाज्ञा प्रश्न / पंचम सर्ग / सप्तक १ / तुलसीदास
राम नाम कलि कामतरु राम भगति सुरधेनु।
सगुन सुमंगल मूल जग गुरु पद पंकज रेनु॥१॥
कलियुगमें श्रीराम-नाम कल्पवृक्ष (मनचाहा वस्तु देनेवाला) है और रामभक्ति कामधेनु है। गुरुदेवके चरणकमलोंकी धूलि जगत्में सारे शुभ शकुनों तथा कल्याणोंकी जड़ है॥१॥
(प्रश्न फल शुभ है।)
जलधि पार मानस अगम रावन पालित लंक।
सोच बिकल कपि भालु सब, दुहुँ दिसि संकट संक॥२॥
समुद्रके पार मनसे भी अगम्य रावणद्वारा पालित लंका नगरी है। सारे वानर-भालू इस चिन्तासे व्याकुल हो रहे हैं कि दोनों और (समुद्रपार होनेमें और बिना कार्य पुरा किये लौटनेमें) शंका और विपत्ति है॥२॥
(प्रश्न-फल निकृष्ट है।)
जामवंत हनुमान बलु कहा पचारि पचारि।
राम सुमिरि साहसु करिय, मानिय हिएँ न हारि॥३॥
जाम्बवन्तजीने बार बार ललकारकर हनुमान्जीके बलका वर्णन किया। (प्रश्नक-फल यह है कि) श्रीरामका स्मरण करके साहस करो। हृदयमें हार मत मानो। (हताश मत हो)॥३॥
राम काज लगि जनमु सुनि हरषे हनुमान।
होइ पुत्र फलु सगुन सुभ, राम भगतु बलवान॥४॥
'तुम्हारा संसारमें जन्म ही श्रीरामका कार्य करनेके लिये हुआ है' यह सुनकर हनुमान्जी प्रसन्न हो गये। यह शकुन शुभ है, इसका फल यह है कि श्रीरामभक्त बलवान् पुत्र होगा॥४॥
कहत उछाहु बढा़इ कपि साथी सकल प्रबोधि।
लागत राम प्रसाद मोहि गोपद सरिस पयोधि॥५॥
सभी साथियोंको आश्वासन देकर उनका उत्साह बढा़ते हुए हनुमान्जी कहते हैं-'श्रीरामकी कॄपासे समुद्र मुझे गायके खुरसे बने गड्ढेके समान लगता है'॥५॥
(प्रश्नग फल शुभ है, कठिनाई दूर होगी।)
राखि तोषि सबु साथ सुभ, सगुन सुमंगल पाइ।
कुदि कुधर चढि़ आनि उर, सीय सहित दोउ भाइ॥६॥
साथके सब लोगोंको वहीं रखकर (रहनेको कहकर) तथा सन्तोष देकर उत्तम मंगलकारी शकुन पाकर, श्रीजानकीजीके साथ दोनों भाई (श्रीराम-लक्ष्मण) को हृदयमें ले आकर (स्मरण करके) कूदकर (हनुमान्जी) पर्वतपर चढ़ गये॥६॥
(यात्राके लिये शुभ शकुन है।)
हरषि सुमन बरषत बिबुध, सगुन सुमंगल होत।
तुलसी प्रभु लंघेउ जलधि प्रभु प्रताप करि पोत॥७॥
देवता प्रसन्न होकर पुष्पवर्षा कर रहे हैं, श्रेष्ठ मंगलकारी शकुन हो रहे हैं। तुलसीदासजीके स्वामी (हनुमान्जी) प्रभु श्रीरामके प्रतापको जहाज बनाकर (श्रीरामके प्रतापसे) समुद्र कूद गये॥७॥
(प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)