रामाज्ञा प्रश्न / चतुर्थ सर्ग / सप्तक ६ / तुलसीदास
लेत बिलोचन लाभु सब बड़भागी मग लोग।
राम कृपाँ दरसनु सुगम, अगन जाग जप जोग॥१॥
मार्गके सब लोग बडे़ भाग्यशाली हैं, वे नेत्रोंका लाभ (श्रीरामका दर्शन) पा रहे हैं -जो (श्रीरामका) दर्शन यज्ञ जप तथा योगद्वारा भी अगम्य है, परन्तु श्रीरामकी कृपासे सुगम (सुलभ) हो जाता है॥१॥
(प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
जलद छाँह मृदु मग अवनि सुखद पवन अनुकूल।
हरषत बिबुध बिलोकि प्रभु बरषत सुरतरु फूल॥२॥
बादल छाया कर रहे हैं, मार्गकी भूमि कोमल हो गयी है, सुखदायी अनुकूल वायु चल रही है। प्रभुको देखकर देवता प्रसन्न हो रहे हैं और कल्पवृक्षके पुष्पोकी वर्षा कर रहे हैं॥२॥
(प्रश्न-फल शुभ है।)
दले मलिन खल राखि मख, मुनि सिष आसिष दीन्ह।
बिद्या बिस्वामित्र सब सुथल समरपित कीन्हि॥३॥
(प्रभुने) दुष्ट राक्षसोंको नष्ट कर दिया और इस प्रकार यज्ञकी रक्षा की। मुनि विश्वामित्रजीने उन्हें शिक्षा और आशीर्वाद दिया तथा पुण्यस्थलमें सारी विद्याएँ दान की॥३॥
(प्रश्न-फल उत्तम है।)
अभय किए मुनि राखि मख, धरें बान धनु हाथ।
धनु मख कौतुक जनकपुर चले गाधिसुत साथ॥४॥
हाथमें धनुष-बाण लेकर (प्रभु ने) यज्ञ की रक्षा और मुनियोंको निर्भय कर दिया । फिर वे विश्र्वामित्रजीके साथ धनुष्य - यज्ञकी क्रीडा़ देखने जनकपुर चले॥४॥
(प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
गौतम तिय तारन चरन कमल आनि उर देखु।
सकल सुमंगल सिद्धि सब करतल सगुन बिसेषु॥५॥
गौतम मुनिकी पत्नी (अहल्या) का उद्धार करनेवाले चरणोंको हृदयमें लाकर देखो (हृदयमें उनका ध्यान करो)। यह शकुन विशेषरूपसे सूचित करता है कि सब प्रकारका परम कल्याण तथा सारी सफलता हाथमें ( प्राप्त ही ) समझो॥५॥
जनक पाइ प्रिय पाहुने पूजे पूजन जोग।
बालक कोसलपाल के देखि मगन पुर लोग॥६॥
महाराज जनकने पूजा करनेयोग्य प्रिय अतिथियोंको पाकर उनका पूजन किया। कोसलनरेश (महाराज दशरथ) के कुमारोंको देखकर नगरवासी आनन्दमग्न हो रहे हैं॥६॥
(प्रश्न-फल शुभ है।)
सनमाने आने सदन पूजे अति अनुराग।
तुलसी मंगल सगुन सुभ भूरि भलाई भाग॥७॥
महाराज जनक श्रीराम - लक्ष्मणसहित विश्वामित्रजी को सम्मानपूर्वक राजभवनमें ले आये और अत्यन्त प्रेमपूर्वक उनकी पूजा की । तुलसीदासजी कहते हैं कि यह शुभ शकुन मंगलकारी है, भाग्यमें बहुत अधिक बडा़ई है॥७॥