रामाज्ञा प्रश्न / पंचम सर्ग / सप्तक ७ / तुलसीदास
मेघनादु अतिकाय भट परे महोदर खेत।
रावन भाइ जगाइ तब कहा प्रसंगु अचेत॥१॥
मेघनाद, अतिकाय, महोदर आदि योधा युद्धभूमिमें मारे गये, तब मूर्ख रावणने अपने भाई कुंभकर्णको जगाकर सब बातें कहीं॥१॥
(प्रश्न-फल अशुभ है।)
उठि बिसाल बिकराल बड़ कुंभकरन जमुहान।
लखि सुदेस कपि भालु दल जनु दुकाल समुहान॥२॥
विशाल शरीरवाले अत्यन्त भयंकर कुंभकर्णने उठकर जम्हाई लो तो ऐसा दीख पडा़ मानो अकाल (मूर्तिमान् होकर) वानर- भालु- सेनारुप उत्तम देशके सामने आ गया है॥२॥
(शकुन अकालसूचक है।)
राम स्याम बारिद सघन बसन सुदामिनि माल।
बरषत सर हरषत बिबुध दला दुकालु दयाल॥३॥
श्रीराम घने काल मेघके समान हैं और अनेक वस्त्र विद्युत-मालाके समान है। उनके बाण-वर्षा करनेसे देवता प्रसन्न होते हैं, (इस प्रकार) उन दयालुने अकाल (रूपी) कुम्भकर्णको नष्ट कर दिया॥३॥
(सुवृष्टि होगी, अकाल दूर होगा।)
राम रावनहीं परसपर होति रारि रन घोर।
लरत पचारि पचारि भट समर सोर दुहूँ ओर॥४॥
युद्धमें श्रीराम और रावणके बीच परस्पर भयंकर संग्राम हो रहा है। योधा एक-दूसरेको ललकार-ललकारकर युद्ध कर रहे है। युद्धमें दोनों दलोमें कोलाहल हो रहा है॥४॥
(प्रश्न-फल कलहसूचक है।)
बीस बाहु दस सीस दलि, खंड खंड तनु कीन्ह।
सुभट सिरोमनि लंकपति पाछे पाउ न दीन्ह॥५॥
(श्रीरामने) रावणकी बीस भुजा तथा दस मस्तक काटकर शरीरके टुकडे़-टुकडे़ कर दिये; किंतु (इतनेपर भी) उस शूर-शिरोमणिने (युद्धसे) पीछे पैर नहीं रखा॥५॥
(प्रश्न-फल पराजयसूचक है।)
बिबुध बजावत दुंदुभी, हरषत बरषत फूल।
राम बिराजत जीति रन सुत सेवक अनुकुल॥६॥
देवता नगारे बजा रहे हैं और प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा कर रहे है। देवताओं तथा सेवकोंके नित्य अनुकूल रहनेवाले श्रीराम युद्धमें जीतकर सुशोभित हो रहे हैं॥६॥
(प्रश्न-फल विजयसूचक है।)
लंका थापि बिभीषनहि बिबधु सुबास।
तुलसी जय मंगल कुसल, सुभ पंचम उनचास॥७॥
(प्रभुने) लंकामें विभीषणको (राज्य देकर) स्थपित किया और देवतांओंको भली प्रकर (निर्भय करके) बसाया। तुलसीदासजी कहते हैं कि पंचम सर्गका यह उनचासवाँ दोहा शुभ है, विजय, मंगल तथा कुशलका सूचक है॥७॥