रामाज्ञा प्रश्न / षष्ठम सर्ग / सप्तक १ / तुलसीदास
रघुपति आयसु अमरपति अमिय सींचि कपि भालु।
सकल जिआए सगुन सुभ सुमरहु राम कृपालु॥१॥
श्रीरघुनाथजीकी आज्ञासे देवराज इन्द्रने अमृत-वर्षा करके सभी वानर-भालुओंको जीवित करे दिया। कृपालु श्रीरामका स्मरण करो, यह शकुन शुभ है॥१॥
सादर आनी जानकी हनुमान प्रभु पास।
प्रीति परस्पर समउु सुभ सगुन सूमंगल बास॥२॥
हनुमान्जी आदरपूर्वक श्रीजानकीजीको प्रभुके समीप ले आये। यह शकुन सुमंगलका निवास है-परस्पर प्रेम रहेगा, समय सुन्दर (सुकाल) रहेगा॥२॥
सीता सपथ प्रसंग सुभ सीतल भयउ) कृसानु।
नेम प्रेम ब्रत धरम हित सगुन सुहावनु जानु॥३॥
श्रीजानकीजीके शपथ-ग्रहणका प्रसंग शुभ है, उनके लिये अग्नि शीतल हो गया था। नियम-पालन प्रेम (भक्ति), व्रत एवं धर्माचरणके लिये शकुन तब उत्तम समझो॥३॥
सनमाने कपि भालु तब सादर साजि बिमानु।
सीय सहित सानुज सदल चले भानु कुल भानु॥४॥
सूर्यवंशके सूर्य श्रीरघुनाथजीने सभी वानर-भालुओंका सम्मान किया, फिर आदरपुर्वक पुष्पकविमान सजाकर उसमें श्रीजानकीजी, लक्ष्मणजी तथा अपने दलसहित बैठकर (अयोध्याको) चले॥४॥
(प्रश्न-फल शुभ है।)
हरषत सुर बरषत सुमन, सगुन सुमंगल गान।
अवधनाथु गवने अवध, खेम कुसल कल्यान॥५॥
देवता प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा कर रहे हैं और मंगलगान कर रहे हैं। (इस प्रकार) श्रीअयोध्यानाथ (श्रीराम) अयोध्या चले। यह शकुन कुशल-मंगल तथा भलाइका सूचक है॥५॥
(विदेश गया व्यक्ति सकुशल लौटेगा।)
सिंधु सरोवर सरित गिरि कानन भूमि बिभाग।
राम दिखावत जानकिहि उमगि उमगि अनुराग॥६॥
श्रीराम प्रेमकी उमंगमें आकर जानकीको समुद्र, सरोवर, नदियाँ, पर्वत वन तथा विभिन्न भूभाग दिखला रहे हैं॥६॥
(प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
तुलसी मंगल सगुन सुभ कहत जोरि जुग हाथ।
हंस बंस अवतंस जय जय जय जानकि नाथ॥७॥
तुलसीदास दोनों हाथ जोड़कर कहते हैं-'सूर्यवंशविभुषण श्रीजानकीनाथकी जय हो ! जय हो !! जय हो !!!' यह शुभ शकुन मंगलकारी है॥७॥