रामाज्ञा प्रश्न / षष्ठम सर्ग / सप्तक २ / तुलसीदास
अवध अनंदित लोग सब ब्योम बिलोकि बिमानु।
नमहूँ कोकनद कोक मद मुदित उदित लखि भानु॥१॥
आकाशमें विमानको देखकर अयोध्याके सब लोग ऐसे आनन्दित हो रहे हैं, जैसे उदय होते सूर्यको देखकर कमल तथा चकवा पक्षियोंका मन खिल उठता है॥१॥
(प्रश्न-फल शुभ है, प्रिय मिलन होगा।)
मिले गुरुहि जन परिजनहि, भेंटत भरत सप्रीति।
लखन राम सिय कुसल पुर आए रिपु रन जीति॥२॥
शत्रुको युद्धमें जीतकर श्रीराम - जानकी और लक्ष्मण कुशलपूर्वक अयोध्या लौट आये। वहाँ गुरुदेवसे, नगरके लोगोंसे तथा सेवक-सम्बन्धियोंसे मिलकर बडे़ प्रेमसे (प्रभु) भरतसे अंकमाल देकर मिले॥२॥
(प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
उदबस अवध अनाथ सब अंब दसा दुख देखि।
रामु लखनु सीता सकल बिकल बिषाद बिसेषि॥३॥
अयोध्याको अनाथ तथा उजाड़ और सभी माताओंकी दुःखभरी दशा देखकर श्रीराम, लक्ष्मण और जानकींजी-सभी व्याकुल हो गये; उन्हें बहुत दुःख हुआ॥३॥
(प्रियजनोंके दुःखसे शोक होगा।)
मिली मातु हित गुरु सनमाने सब लोग।
सगुन समय बिसमय हरष प्रिय संजोग बियोग॥४॥
माताएँ (प्रेमसे) मिलीं; (प्रभेने) हितैषियों, मित्रों तथा गुरुदेव-सभी लोगोंका सम्मान किया। यह शकुन प्रियजनके मिलन एवं वियोगसे होनेवाले हर्ष एवं दुःखका सूचक है॥४॥
अमर अनंदित मुनि मुदित मुदित भुवन दस चारि।
घर घर अवध बधावने मुदित नगर नर नारि॥५॥
देवता आनन्दमग्न हैं, मुनिगण प्रसन्न हैं, चौदहों भुवन हर्षयुक्त हैं। अयोध्याके घर-घरमें बधाई बज रही हैं: नगरके पुरुष-स्त्री (सब) प्रसन्न है॥५॥
(प्रश्न-फल शुभ है।)
सुदिन सोधि गुरु बेद बिधि कियो राज अभिषेक।
सगुन सुमंगल सिद्धि सब दायक दोहा एक॥६॥
गुरुदेवने शुभ दिनका विचार करके (श्रीरघुनाथजीका) वैदिक विधिसे राज्यभिषेक किया। यह एक दोहा समस्त श्रेष्ठ मंगल एवं सिद्धियोंको देनेवाला शकुन है॥६॥
भाँति भाँति उपहार लेइ मिलत जुहारत भूप।
पहिराए सनमानि सब तुलसी सगुन अनूप॥७॥
राजा लोग नाना प्रकरके उपहार लेकर मिलते और अभिवादन करते हैं। (प्रभुने) सबका सम्मान करके उन्हें वस्त्राभरण पहिनाये। तुलसीदासजी हैं कि यह अनुपम (मंगल) शकुन है॥७॥