रामाज्ञा प्रश्न / पंचम सर्ग / सप्तक ६ / तुलसीदास
पाहि पाहि असरन सरन, प्रनतपाल रघुराज।
दियो तिलक लंकेस कहि राम गरिब नेवाज॥१॥
(विभीषणने श्रीरामके पास जाकर कहा-) ' हे अशरणशरण ! शरणागतरक्षक श्रीरघुनाथजी ! रक्षा करो ! रक्षा करो ! रक्षा करो !' (यह सुनकर) दोनोंपर कृपा करनेवाले श्रीरामने (विभीषणको) लंकेश कहकर राजतिलक कर दिया॥१॥
(प्रश्न-फल शुभ है।)
लंक असुभ चरचा चलति हाट बाट घर घाट।
रावन सहित समाज अब जाइहि बारह बाट॥२॥
लंकाके बाजारोंमें, मार्गोपर, घरोंमें तथा घाटोंपर यही अमंगल - चर्चा होती रहती है कि ' अब समाजके साथ रावण नष्ट हो जायगा॥२॥
(प्रश्न-फल अशुभ है।)
ऊकपात दिकादाह दिन, फेकरहिम स्वान सियार।
उदित केतु गतहेतु महि कंपाति बारहि बार॥३॥
(लंकामें) दिनमें ही उल्कापात होता है, दिशाओमें अग्निदाह होता है, और सियार रोते हैं, स्वार्थका नाशक धूमकेतु उगता है और बार-बार पृथ्वी काँपती (भूकम्प होता) है॥३॥ (प्रश्न-फल महान् अनर्थ का सुचक है।)
राम कृपाँ कपि भालु करि कौतुक सागर सेतु।
चले पार बरसत बिबुध सुमन सुमंगल हेतु॥४॥
श्रीरामकी कृपासे खेल-ही-खेलमें समुद्रपर सेतु बनाकर वानर-भालु समुद्रपार चले, उनके मंगलके लिये देवता पुष्पवर्षा कर रहे हैं॥४॥
(प्रश्न-फल श्रेष्ठ है।)
नीच निसाचर मीचु बस चले साजि चतुरंग।
प्रभु प्रताप पावक प्रबल उडि़ उडि़ परत पतंग॥५॥
नीच राक्षस मृत्युके वश होकर चतुरंगिणी (पैदल, घुडसवार, हाथी और रथोंकी) सेना सजाकर चले। प्रभु श्रीरामजीका प्रताप प्रचण्ड अग्निके समान हैं,जिसमें पतिंगोंकें समान ये उड़ उड़कर गिर रहे है॥५॥
(प्रश्न-फल अशुभ है।)
साजि साजि बाहन चलाहिं जातुधानु बलवानु।
असगुन असुभ न गगहिं गत आइ कालु नियरानु॥६॥
बलवान् राक्षस वाहन (सवारी) सजाकार चलते हैं। अशुभसूचक अपशकुन हो रहे हैं; पर ये उन्हें गिनते नहीं (उनपर ध्यान नहीं देतें, क्योंकि) उनकी आयु समात्प हो गयी है और उनका मृत्यु-काल समीप आ गया है॥६॥
(प्रश्न-फल विनाशसूचक है।)
लरत भालु कपि सुभट सब निदरि निसाचर घोर।
सिर पर समरथ राम सो साहिब तुलसी तोर॥७॥
वानर-भालुओंके सभी श्रेष्ठ योधा घोर राक्षसोंकी उपेक्षा करके युद्ध कर रहे हैं; क्योकीं श्रीराम-जैसे सर्वसमर्थ प्रभु उनके सिरपर (रक्षक) हैं। तुलसीदासजी कहते हैं कि वे ही तुम्हारे (मेरे) भी स्वामी हैं॥७॥
(शकुन शत्रुपर विजय सूचित करता है।)