कर्त्तव्यक पालन करु नृपवर!
प्रजा हितक दए कान।
पाप थीक नहि करब अधीनक
रक्षा पोषण ध्यान।।13।।
जनपूजा थिक सभसँ उत्तम
काज अहाँ धु्रब जानु।।
हिमकन्दरमे वैसव तजिकें
ई नहि कहिओ मानु“।।14।।
एहि विधि गप्पक क्रम छल चलइत
तावत नभसं श्याम।
उतरल श्रीक प्रभासँ मण्डित
तेज एक अनुपाम।।15।।
रूप देखि पुलकित मन सज्जन
पूरित जानल काम।
अएला अरुण-चरण मधुसूदन
भक्तविभव घनश्याम।।16।।