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शरशय्या / तेसर सर्ग / भाग 5 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'

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राजा ऊठि कएल तनि अर्चा
दिव्यासन बैसाए।
“आज्ञा की अछि पालक! प्रभुवर!
कहल एखन से जाए।।17।।

कहि, उत्सुक भए सूनए लगला
समुचित तत आदेश।
“चलु चलु सत्त्वर भीष्मपितामह-
सँ पाएब उपदेश।।18।।

भारत गगनक रविक पतनसँ
निशा तिमिर हो भान।
हमरो अन्तर पर न एखन अछि
दुःख हुनकर-अवसान।।19।।

जाए रहल छथि छोड़ि विश्वके
फेंकि विष दक कूप।
रहत कोना धैर्य, परखिकें
शरशय्या पर भूप।।20।।